आत्ममंथन
समझे नही कोई
दोषी है सभी।
बहू औ बेटी
नही एक विचार
शर्म की बात।
शर्म गहना
अँखियन पहना
क्या है कहना।
बेचीं आबरू
रक्षक ही भक्षक
बिटियां रोई।
लूटी कलियां
शर्मिंदा खुद माली
पीये ज़हर।
शीशे के घर
मानवता गिरवी
टूटती शर्म।
ये साहूकार
अनजान हस्तियां
दामन मैला।
सर झुकाया
वतन का पतन
ये मेरा देश।
#स्वरचित
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