शनिवार, 3 जून 2017

बाग गुफाएं

हैं छोटी सी ,मगर मोटी सी
एक कहानी, इकलौती सी
बाग गुफाएं, कहती सदाए
वो आदि इमारतें,
वो चित्रकारी,
वो उम्दा नक्कारी,
वो पानी के झरने,
कहते है हमसे,
इस जहाँ में हम ,
एक कहानी कहते से।
वो कौरवो का धोखा,
औ लाक्षागृह की रात,
अग्नि से बचके,
थोड़े से धस के,
एक सुरंग बनाई,
जो इस गुफा तक थी आई,
आज गुमनामी पाई,
घोर घनेरी हरियाली छाई,
जैसे ही एक बारिश आई,
नदी किनारे,बाग गुफाएं,
और ये हवाएं,
बाद युग बीते,
बौद्ध युग आए,
पाई शरण गुफाओं में,
निशानियां आज भी हवाओं में,
मिलती हर एक फिजाओं में।
कई स्तूप,कई सुरंग,अजीज
चित्रकारी अनुपम लजीज
कई मूर्तियां जीवन्त बोलती,
राज उस पल के वो है खोलती।
एक छोटा सा संग्रहालय,
सजा ग्रामिण नक्काशी से,
एक ही जगह जहाँ,
आज भी पाए,
अण्डे डायनासौर के,
देखो जाकर देखो,
न देखा पछताओगे,
गये तो वही बस जाओगे।
धार जिला, और इस घने जंगल में,
तुम दिल अपना खो जाओगे।
#स्वरचित

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