गुरुवार, 15 जून 2017

मुक्तक मेहंदी

आज के विषय मुक्तक(मेंहदी)पर मेरा (प्रथम )प्रयास।कमियां सादर आमन्त्रित है।

1)मेंहदी हूँ रंग तो लाऊँगी
    बन के खुशबू  फिर बिखर जाऊँगी
    लालिमा प्रेम की छाएगी ऐसी
    लाख चाहूँ ना उतार पाऊँगी।
1)मेंहदी हूँ रंग तो लाऊँगी
    बन के खुशबू  फिर बिखर जाऊँगी
    लालिमा प्रेम की छाएगी ऐसी
    लाख चाहूँ ना उतार पाऊँगी

2)डोली उसकी उठे जिसके हाथो मे हूँ रची
     सुहागिन ये कहे मेरी सांसो मे हूँ बसी
     जिंदगी का कोई रंग नही है मेरे सिवा
     मेंहदी बचपन की लगन व जवानी की सखी।

3)गलतियां लाख कर लू फिर से कलम उठाना है
    तूफानों चीर आगे पुनः कदम बढ़ाना है
    आज देखू ,कितनी योग्यता है मुझमे अभी शेष
    पिस पिस फिर मुझे मेंहदी सा ही निखर जाना है।
    

#स्वरचित

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