शनिवार, 3 जून 2017

दोस्त

हो तकलीफ जो कोई तो मुझको बताना,हूँ साथ मैं तेरे हर पल तुम भूल न जाना, पर आज भी कुछ कहने को सुनने को ये मौके ढूंढ रही है,भीतर से पत्नी तुम में एक दोस्त ढूंढ रही है। मैं मुश्किल नहीं इतनी के समझ ना आऊँ,पर ना जाने किन अल्फ़ाज़ों में तुम्हे समझाऊं, डर है मुझे मेरे हाथों से प्रेम की ये डोर छूट रही है,भीतर से पत्नी तुम में एक दोस्त ढूंढ रही है। सभी पति और पत्नी ज़िम्मेदारी है निभाते,पर इस बीच वो खुद को हैं कहीं खो आते, मैं देख सकती हूँ के बालों की सफेदी के मुकाम पे ये कमी तुम्हे भी खल रही है,भीतर से पत्नी तुम में एक दोस्त ढूंढ रही है। क्यूँ गुम हो तुम खुद में मैं भी तो यहाँ हूँ,तुमसे जुडी इस रिश्ते के दरमियान हूँ, दूरी बढ़ते बढ़ते अब बातें भी खामोश हो रही हैं,भीतर से पत्नी तुम में एक दोस्त ढूंढ रही है। मन के दरवाज़ों को पाट के तो देखो,तुम मुझसे अपने आप को बाँट के तो देखो, एक नज़र उठा के देख लो ये हज़ार कोशिशें कर रही है,भीतर से पत्नी तुम में एक दोस्त ढूंढ रही है। काश हम एक दूजे से बिल्कुल खुले हों,हम दूर हो भले ही पर मनमें ना फासले हों, झिझक ये मिट जाए तुमसे पहल करने को कह रही है,भीतर से पत्नी तुम में एक दोस्त ढूंढ रही है।

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