लघुकथा-खुशी के आँसू।
मणि ठाकुरजी की पूजा के लिये फूल तोड़ रही थी तभी कुछ बच्चे मणि से कहने लगे-"दादीजी हमारी गेंद आ गई है आपके बगीचे में,हम ले ले क्या?
"राम राम राम ये सुबह सुबह किन पापियों का मुंह दिखाया ठाकुरजी।पता नही किस किस का पाप है,चलो भागों यहाँ से"कहते हुए मणि अंदर चली गई।
मीरा-"माँजी आज मैं भी चलू आपके साथ मंदिर?"
मणि-"हाँ हाँ चल बेटा"।कहते हुए मणि के होंठो पे हल्की सी मुस्कान आ गई।
मंदिर पहुँच कर मणि अपनी पूजा में लग गई।कुछ देर बाद उसके कानों मे मीरा के खिलखिलाने की आवाज आई।मणि पूजा पाठ छोड़ देखने उठी।मीरा को कुछ बच्चे घेरे हुए थे और मीरा खिलखिला रही थी।मणि के चेहरे पर उदासी छा गई।पूरे रास्ते मणि जैसे कुछ सोच रही हो।घर के बाहरी गेट पर पहुँच कर मणि बोली-"बहू तुम अंदर जाओ मैं अभी आती हूँ।"कहकर मणि सामने वाली बिल्डिंग में जाती है और थोड़ी देर बाद वापस घर आकर मीरा के हाथों में दो नवजात शिशु सौपते हुए कहती है-"ले मीरा ,आज से ये तेरी संताने है।पता नही कौन कमबख्त छोड़ गया था अनाथालय इन्हें आज।मैंने सोचा हम अपना लेते है इन मासूमों को।और अब दौड़- धाप छोड़ो आराम करना है सवा महीना।तुझे वो सारे अनुभव दूँगी जो इनकी माँ को मिलना चाहिए,मैं तो अपनी सारी मुरादे पूरी करूंगी भई,ठाकुरजी की कृपा से पोते -पोती का सुख एक साथ मिल गया ।"
मीरा की माँजी के गले लगकर रोने लगी।
मणि-"अरे अब क्यों रोती है पगली!रोए तेरे दुश्मन।"
मीरा-"ये तो खुशी के आँसू है माँजी।आपने तो मुझ अभागन को सारी खुशियां दे दी।मुकुन्दजी ने जरूर कोई पुण्य किये होंगे जो आप जैसी माँ मिली ।ठाकुरजी हर जन्म में मुझे आपकी ही बहू बनाए।"कहते हुए मीरा फिर से मणि के गले लग जाती है।
#स्वरचित#प्रियंका शर्मा
सुधार के पश्चात कहानी
लघुकथा-खुशी के आंसू(सुख के सैलानी)
मणि ठाकुरजी की पूजा के लिये फूल तोड़ रही थी तभी कुछ बच्चे मणि से कहने लगे-"दादीजी हमारी गेंद आ गई है आपके बगीचे में,हम ले ले क्या?
"राम राम राम ये सुबह सुबह किन पापियों का मुंह दिखाया ठाकुरजी।पता नही किस किस का पाप है,चलो भागों यहाँ से"कहते हुए मणि अंदर चली गई।
मीरा-"माँजी आज मैं भी चलू आपके साथ मंदिर?"
मणि-"हाँ हाँ चल बहू।"कहते हुए मणि के होंठो पे हल्की सी मुस्कान आ गई।
मंदिर पहुँच कर मणि अपनी पूजा में लग गई। उसके कानों मे मीरा के खिलखिलाने की आवाज आई।मणि पूजा पाठ छोड़ देखने उठी।मणि के चेहरे पर उदासी छा गई। मीरा को कुछ बच्चे घेरे हुए थे और मीरा खिलखिला रही थी। पूरे रास्ते मणि अनमनी -सी।घर के बाहरी गेट पर पहुँच कर बोली-"बहू तुम अंदर जाओ मैं अभी आती हूँ।" थोड़ी देर बाद वापस घर आकर मीरा के हाथों में दो नवजात शिशु सौप दी,-"ले मीरा ,आज से ये तेरी संताने है। अनाथालय से लेकर आयी हूँ, बच्चे पाप नहीं, पुन्य होते हैं! अब दौड़- धाप छोड़ आराम करना है सवा महीना।तुझे वो सारे अनुभव दूँगी जो इनकी माँ को मिलना चाहिए,मैं तो अपनी सारी मुरादे पूरी करूंगी भई, ठाकुरजी की कृपा से पोते -पोती का सुख एक साथ मिल गया ।"
अकबकाई मीरा मानों गहरी नीद हठात जागी और माँजी के गले लगकर रोने लगी।
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