ऩ होगा कभी दृष्टि से लक्ष्य ओझल ; बनेगा हमारा हृदय-बल ही सम्बल ! अतुल शक्ति अपने पगों मे छिपी है ; झुकेगा किसी दिन इन्ही पर हिमाचल !
अभी कल्पना हो सकी है न पूरी अभी साधना रह गई है अधूरी अभी तो खुला द्वार केवल अभी लक्ष्य मे शेष है और दूरी।
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