रविवार, 11 जून 2017

पापा

ऩ होगा कभी दृष्टि से लक्ष्य ओझल ;
बनेगा हमारा हृदय-बल ही सम्बल !
अतुल शक्ति अपने पगों मे छिपी है ;
झुकेगा किसी दिन इन्ही पर हिमाचल !

अभी कल्पना हो सकी है न पूरी
अभी साधना रह गई है अधूरी
अभी तो खुला द्वार केवल
अभी लक्ष्य मे शेष है और दूरी।

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