दीप प्रतीक है प्रकाश का,
ज्ञान का ,
बुराई पर विजय का,
ये दीप प्रतीक है ज्योर्तिपुंज का,
जो मेरे अंदर जलता है
जो जग को ज्योतिर्मय करता है।
माना अंधेरा होता है बड़ा
और लौ दीये की
छोटी सी;
जो स्वयं तले अंधेरा रख
दूजे को रोशन करती है
ये दीप प्रतीक है उस आस्था का
जो मेरे अंदर पलती है
जग को ज्योतिर्मय करती है।
दीप प्रतीक है सूर्य किरण का
रंग बिरंगे खिलते फूलो का
बादलों को चीरती जल बूंदों का
वो सुंदर इंद्रधनुष का
ये कितनी विभिन्न घटनाये
जो इस धरा पर घटती है
पर सब मे प्रकृति का
एक नियम बस होता है
ये दीप प्रतीक विज्ञान का
जो मेरे अंदर बहता है
जीवन को पग पग
प्रेरित करता है।
ये ब्रह्माण्ड और अपराध भी
माना मैंने,
है बहुत विशाल
और मैं दीन दुःखी
हूँ लघु बड़ी,
पर दीप कहता मैं हीन नही।
नश्वर तो हूँ,
पर क्षीण नही।
ये दीप प्रतीक उस शक्ति का
जो मेरे मानस मे रहती है
जो जग को साहस से भरती है
इस शक्ति मे
विश्वास मैं करती हूँ
और सब सह कर भी
आगे बढ़ती हूँ।
एक दिन जीतूंगी मैं
ज्योति से अपनी
उस अंधेरे को;
जो मुझ पर अनुबंध लगाता है।
नही मानती उस अनुबंध को
जो मुझ पर प्रतिबंध लगाता है।
दीप प्रतीक उस अहम का,
जो मेरे अंदर भी पलता है
जो ऐसे समाज को तोड़ता है।
छोड़ सारी कुरीतियों को
नव रीतियों से सजाता है।
#स्वरचित(प्रियंका शर्मा)
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