मंगलवार, 27 जून 2017

नाव का धर्म

1)लघुकथा-नाव का धर्म।

बेटी की शादी हैआज और सुनीता का मन ही नही लग रहा है किसी काम में।जहाँ जाती है वही औरत उसके पति का बच्चा हाथ में थामे समाज के बीच पति के साथ शान से दिखती है।और ये दोगला समाज भी विधायकजी की जी हुजूरी करते नही थक रहा है।सोच रही है कि यदि उस औरत ने उसकी जगह ले ही ली है ,तो अब वो क्या रह गयी है????किसलिये है यहाँ,जहाँ बहू की सारी मर्यादा और अपेक्षाएँ मात्र एक उसी है।क्यों वो सारी जिम्मेदारियां निभा रही है???
जिन बच्चों को नौ महीने अपनी कोख में रख हर दर्द सहा,क्या पैसों के आगे उन्हें भी उसका दर्द नही दिखता???वो भी तो पापा के साथ आंटी की तस्वीरें खींचने में लगे है......।यही सारी बाते उसके दिमाग मे कबड्डी खेल रही है।
अचानक बेटी की आवाज आती है"मम्मा चलो नीचे,
जरा देखो तो पापा आपके और आंटी के लिये कितने सुंदर लहंगे लाये है।आप ना पिंक वाला पहनना,ठीक है न मम्मा"।बेटी की खुशी का ठिकाना ही नही था।सुनीता एकटक अपनी बेटी को देखे जा रही है,बेटी क्या कह रही ,उस पर तो उसका ध्यान ही नही जा पाता। मन ही मन सोचती है"मेरी लाडो !!कितनी सुंदर लग रही है दुल्हन के जोड़े में और खुश भी।किसी की नजर न लगे बच्ची को मेरी।"सोचते हुये बेटी को काला टीका लगा अपनी सारी पीड़ाओं को दिल के किसी कोने मे दफन किये पुनः अपने कर्तव्यपथ पर अग्रसर हो जाती है।

#स्वरचित#प्रियंका शर्मा

2)लघुकथा:-बौनी प्रीत

रचना अपनी खिलौनों की दुकान पर बैठी ग्राहक का इंतजार कर रही थी,पर ये क्या ग्राहक है जो आने का नाम ही नही ले रहे है।इतने में ही रोज की तरह श्याम बाबू आ जाते है दुकान पर।रचना श्यामबाबू को देखकर शरमा जाती है ।हिचकिचाते हुए उन्हें बैठने को कहती है।यूँ तो श्याम बाबू रोज आते थे,पर आज अजीब सी खामोशी छा जाती है उनके आने पर।इतने मे ही रेडियो पर गाना बजता है"कुछ ना कहो,कुछ भी ना कहो....."।
दोनों एक दूसरे की आँखों में खो जाते है....।
अचानक श्याम बाबू चुप्पी को तोड़ते हुए कहते है-"रचना!क्या सोचा तुमने,मुझसे शादी करोगी या नही।"
रचना-"देखिये शहरी बाबू!!!मेरे तो भाग ही खुल गये,परन्तु आपसे तो कुछ न छुपा है।माँ-बाप है नही,छोटी बहन की पढ़ाई पूरी होने वाली है,पहले उसके हाथ पीले करूँगी मैं;तभी खुद शादी के बारे मे सोचूंगी।"
श्याम बाबू-"हाँ तो कर दे ना पहले उसके हाथ पीले।तेरी हाँ का जीवन भर इंतजार करूँगा।"सुनते ही रचना मन ही मन बहुत प्रफुल्लित हो जाती है मानो बरसो बाद उसे दुनिया की तमाम खुशियां मिल गई हो।
इतने में ही रचना की छोटी बहन कविता आ जाती है"दीदी चलो न,जब मैं शहर से आऊ कम से कम तब तो जल्दी घर आया करो।"
रचना-"अच्छा बाबा तू चल मैं अभी आती हूँ।
कविता जाते हुये श्याम बाबू को नमस्ते कह जाती है।
श्याम बाबू-"ओह्ह्ह!!!ये है तुम्हारी छोटी बहन।पढ़ी लिखी,गोरा रंग,तीखे नैन नक़्श ,सलिखेदार !!!बहुत सुंदर है।"
रचना-"जी ,बस उसके लायक कोई अच्छा लड़का मिल जाये,मेरी सारी जिम्मेदारियां खत्म।"
श्याम बाबू-"देखो रचना!मैं पढ़ा लिखा सुंदर हूँ,भगवान की कृपा से बड़ा अफसर भी हूँ।तुम......अगर ...चाहो...तो..मैं थाम लूँ तुम्हारी छोटी बहन का हाथ।बोलो क्या बोलती हो।"
रचना के पैरों तले मानो जमीन खिसक गयी हो।पल भर को लड़खड़ाते हुये पैरों को संभालते हुए अपनी आँखो मे आँसू लिए शहरी बाबू की ओर घृणित नजरों से देखती रहती है.....।

#स्वरचित#प्रियंका शर्मा

3)लघुकथा-खुशी के आंसू(सुख के सैलानी)

मणि ठाकुरजी की पूजा के लिये फूल तोड़ रही थी तभी कुछ बच्चे मणि से कहने लगे-"दादीजी हमारी गेंद आ गई है आपके बगीचे में,हम ले ले क्या?
"राम राम राम ये सुबह सुबह किन पापियों का मुंह दिखाया ठाकुरजी।पता नही किस किस का पाप है,चलो भागों यहाँ से"कहते हुए मणि अंदर चली गई।
मीरा-"माँजी आज मैं भी चलू आपके साथ मंदिर?"
मणि-"हाँ हाँ चल बेटा"।कहते हुए मणि के होंठो पे हल्की सी मुस्कान आ गई।
मंदिर पहुँच कर मणि अपनी पूजा में लग गई।कुछ देर बाद उसके कानों मे मीरा के खिलखिलाने की आवाज आई।मणि पूजा पाठ छोड़ देखने उठी।मीरा को कुछ बच्चे घेरे हुए थे और मीरा खिलखिला रही थी।मणि के चेहरे पर उदासी छा गई।पूरे रास्ते मणि जैसे कुछ सोच रही हो।घर के बाहरी गेट पर पहुँच कर मणि बोली-"बहू तुम अंदर जाओ मैं अभी आती हूँ।"कहकर मणि सामने वाली बिल्डिंग में जाती है और थोड़ी देर बाद वापस घर आकर मीरा के हाथों में दो नवजात शिशु सौपते हुए कहती है-"ले मीरा ,आज से ये तेरी संताने है।पता नही कौन कमबख्त छोड़ गया था अनाथालय इन्हें आज।मैंने सोचा हम अपना लेते है इन मासूमों को।और अब दौड़- धाप छोड़ो आराम करना है सवा महीना।तुझे वो सारे अनुभव दूँगी जो इनकी माँ को मिलना चाहिए,मैं तो अपनी सारी मुरादे पूरी करूंगी भई,ठाकुरजी की कृपा से पोते -पोती का सुख एक साथ मिल गया।
अकबकाई मीरा मानो गहरी नींद हठात् जागी और मणि के गले लग कर रोने लगी।

#स्वरचित#प्रियंका शर्मा

4)लघुकथा-ग्रहण

कीर्ति -"चंचल तेरे लिए बर्थ डे गिफ्ट लाई हूँ मैं,पर तू मुझे केक तो खिलाएगी ना और बलून भी देगी?
चंचल-"हा दूंगी,पर पहले तू गिफ्ट दे।तेरे लिए मैं बड़ी वाली टॉफी लाई हूँ,तू मेरी बेस्ट फ़्रेंड है ना इसलिए।
चंचल के पिता ने छट से कीर्ति को गोद मे उठाया और"चलो चलो अभी दिखाता हूँ"कहते हुए उसे टॉफी देने ले गए।
इतने मे ही कीर्ति को मम्मी की याद आ गई। और तपाक से चिल्लाई"उतारो मुझे अंकल"।वहा मौजूद सभी लोगों का ध्यान कीर्ति पर आ गया।और अंकल ने उसे नीचे उतार दिया।
"क्या हुआ बच्चा,बड़ो से ऐसे बात नही करते।चंचल की मम्मी ने कीर्ति से बड़े प्यार से कहा।
"सभी मुझे प्यार करते है आंटी ,पर जब अंकल प्यार करते है तो मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता।अंकल चंचल की तरह प्यार नही करते मुझसे।मम्मी ने समझाया हैकि जब तितली को कोई बेड टच करता है तो वो उड़ जाती है।डागी को बेड टच करते है तो वह भी बार्किंग करता है।इसीलिए जब तुम्हे कोई बेड टच करे तो तुम भी वही करना ,डरना नही और सबको बताना चुप ना रहना ,।"कीर्ति ने पूरे साहस के साथ आंटी की बातों का जवाब दिया।
चंचल की माँ की आंखो मे शर्म और "उबलते नीर" साफ दिखाई दे रहे थे उसने कीर्ति को गले से लगाया और चंचल के पिता की ओर देखते हुए कहा"शाबाश!मेरा बच्चा।"

#स्वरचित

जीवन-परिचय प्रारूप:

1 रचनाकार का नाम- प्रियंका शर्मा.   
2)पति का नाम- ऋषि शर्मा
3)वर्तमान/स्थायी पता-
   प्रियंका शर्मा व/०ऋषि शर्मा
    गवली हॉस्पिटल के पास,
     कुरावर मंडी,जिला-राजगढ़(ब्यावरा)
     तहसील-नरसिंहगढ़(म.प्र.)
4)
    ई मेल-
     Priyankaupadhyay193@gmail.com
5)शिक्षा- बी.एस. सी.(कंप्यूटर साइंस)
              एम. एस. सी.(कंप्यूटर साइंस)
              (पी. जी. रकॉलेज,मन्दसौर,
                 विक्रम यूनिवर्सिटी,उज्जैन)
    जन्म-तिथि-
            15/05/1987
6)व्यवसाय- Nill          

7)प्रकाशन विवरण-
            प्रयास पत्रिका(संपादक-सरन घई),हिंदीसागर पत्रिका(जे. एम.डी. पब्लिकेशन,दिल्ली)।
8)घोषणा-
            मैं ये घोषणा करती हूँ किप्रकाशन हेतु भेजी गयी समस्त रचनाएं मेरे द्वारा लिखित है तथा जीवन परिचय में दी गयी समस्त जानकारी पूर्णतया सत्य है,असत्य पाये जाने की दशा में हम स्वयं जिम्मेदार होंगे।
      
प्रियंका शर्मा
दिनांक- 22/06/2017

      
         



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