शुक्रवार, 19 मई 2017

मगरूर

विषय-मगरूर
विधा-छंद मुक्त रचना।

होकर मगरूर,नशे में चूर,
मत भूलो तुम मानवता को,
जन्म लिया मनु वंशज हो,
मत धारो तुम दानवता को।

मशहूर से मगरूर का देखो,
नाता बहुत करीब है होता,
मशहूर तो हो,मगरूर न होना,
त्यागो तुम इस जटिलता को।।

हाथों में लेकर हम हाथ चलो,
सहज स्वीकार करो सरलता को,
नित स्नेह सदा निःस्वार्थ बनो,
गढों अहम से परे मिसाल को।।
#स्वरचित#

जीवन-परिचय प्रारूप:

1 रचनाकार का नाम- प्रियंका शर्मा.   
2)पति का नाम- ऋषि शर्मा
3)वर्तमान/स्थायी पता-
   प्रियंका शर्मा व/०ऋषि शर्मा
    गवली हॉस्पिटल के पास,
     कुरावर मंडी,जिला-राजगढ़(ब्यावरा)
     तहसील-नरसिंहगढ़(म.प्र.)
4)फोन नंबर/व्हाट्स एप्प नंबर-
    8827712307
    ई मेल-
     Priyankaupadhyay193@gmail.com
5)शिक्षा- बी.एस. सी.(कंप्यूटर साइंस)
              एम. एस. सी.(कंप्यूटर साइंस)
              (पी. जी. कॉलेज,मन्दसौर,
                 विक्रम यूनिवर्सिटी,उज्जैन)
    जन्म-तिथि-
            15/05/1987
6)व्यवसाय- Nill          

7)प्रकाशन विवरण-
            प्रयास पत्रिका(संपादक-सरन घई),हिंदीसागर पत्रिका(जे. एम.डी. पब्लिकेशन,दिल्ली) श्रेष्ठ  कवियत्री सम्मान प्राप्त,जनकृति पत्रिका।
8)घोषणा-
            मैं ये घोषणा करती हूँ किप्रकाशन हेतु भेजी गयी समस्त रचनाएं मेरे द्वारा लिखित है तथा जीवन परिचय में दी गयी समस्त जानकारी पूर्णतया सत्य है,असत्य पाये जाने की दशा में हम स्वयं जिम्मेदार होंगे।
      
प्रियंका शर्मा
दिनांक- 
17/05/2017



गुरुवार, 18 मई 2017

कल्पना

सीप चंद सी परछाई,
देखी मैंने जल नभ में,
नाविक बन हुई सवार ,
नीले अम्बर के जल तल में।

नीला अम्बर अति सुंदर शोभित,
फैल रहा है चंद चंद में,
शशिकला भी सुन्दर सुशोभित,
झलकी मेरे तन मन मे।

मिलन ये कैसा सुन्दर देखो,
जल नभ का क्षितिज में,
और मेरा मन हुआ लालायित,
छूने को इस मधुर भ्रम में।

देखू जैसे चकोर टकटकी,
ओझल न हो घडी सुनहरी,
मन हर्षित हुआ प्रफुल्लित,
बयां न होगी मेरे मन की।

#स्वरचित#
प्रियंका शर्मा

बुधवार, 17 मई 2017

हायकू चाँद1

#स्वरचित-प्रियंका शर्मा#

#विषय-चाँद#

#विधा-हायकू#

चाँद न आया
दूर तलक अब
अँधेरा छाया।

रात घनेरा
घन घन गहरा
तारों का डेरा।

मन बावरा
पिया पर ठहरा
लाज लपेरा।

चाँद चकोर
बिरहन की आली
मैं मतवारी।

तारे बैरन
आज पि मिलन की
लगती काली।

क्यों मनवा
अब झांके उधर
शाख जिधर।

साँझ सकारे
दिल यही पुकारे
बालम आ रे।

हम अरसे
मिलन को तरसे
मन भाग रे।

मनवा छोड़
आज पि की नगरी
छोड़ डगरी।

चाँद निकला
हटा सब पहरा
मुख ठहरा।

आँसू गिरते
पियाजी जो दिखते
प्यार गहरा।

सोमवार, 15 मई 2017

मुसाफिर

मुसाफिर मैं
जीवन डगर में
चलती रही

रास्ते कठिन
उबड़ खाबड़ ही
चलती चली

चोट भी खाई
हुई जग हँसाई
चुप ही रही

कांटे झाड़ियां
बचते बचाते भी
चलती चली

चाहा बचना
शॉर्टकट ही नहीँ
तलाशें कभी

रास्ते वही जो
पाते थे मंजिल
और नही भी

मुसाफिर मैं
जीवन डगर में
चलती रही।
#स्वरचित#

बुधवार, 10 मई 2017

पाँच स्वरचित कविताएँ

1) पहली रचना-
अंधियारे जीवन में ज्योति की तरह आई ,
उसके रूप में मैंने एक नन्ही परी पाई ,
खुशियां ही खुशियां इस दिल में समाई ,
महफ़िल बन गई अब वो बीती तन्हाई ,
अंधियारे जीवन में ज्योति की तरह आई।

फूलों -सी नाजुक है उसकी परछाई ,
मैं उस समय फूली न समाई ,
मुझको जब उसने ''माँ '' है बनाई ,
अंधियारे जीवन में ज्योति की तरह आई।

देती है वो कुछ इस तरह दिखाई ,
कभी पापा ,कभी दादी ,तो कभी नानी माँ की परछाई ,
अंधियारे जीवन में ज्योति की तरह आई

एक पल में हंसाए ,दुसरे ही पल वो  रुलाए ,
रात रात भर जगाकर ,दिन दिन भर वो  सुलाए ,
आँखों में उसकी सीप मोती-सी झलक पाई ,
अंधियारे जीवन में ज्योति की तरह आई।

कभी चन्द्रमा -सी वो  बड़ी हो  जाए ,
 तो कभी चन्द्रमा-सी वो घट जाए ,
क्या है इसमे राज मैं तो समझ न पाई ,
अंधियारे जीवन में ज्योति की तरह आई ,

#स्वरचित#प्रियंका शर्मा#

2)दूसरी रचना(लघुकथा कविता के माध्यम से)-

डरी सहमी लड़की को मैंने,स्कूटी पर बैठे देखा था,
ये सब देख मैंने उसके,पास जाने का सोचा था,
आया इतने में मालिक लड़का,उतरने का उसका कहना था,
रोने लगी,डरने लगी,रंग उडा उसके चेहरे का था,
धीमी सहमी आवाज में मुझे ,शब्द कुछ सुनाया था,
"खून","पीरियड्स","माफ़ कर दीजिए"उसने हाल ये बताया था,
शायद उस दिन लड़की को,पहला पीरियड आया था,
स्तब्ध खड़ी,संकुचाई सी मैं, मन मेरा शरमाया था,
क्या कहूं इस विषय में पुरुष से,कुछ समझ न आया था,
बात समझ सब लड़के ने तब,शांत उसको कराया था,
घबराने की कोई बात नहीँ, ये उसको समझाया था,
आता हूं जल्द कह कर उसने,लड़की को उतारा था,
आवाज दे मुझको लड़की का,ख्याल रखने बुलाया था,
चंद पलों में वो लड़का,वापिस फिर से आया था,
और मेरे हाथों में उसने "सैनेटरी पैड्स" थमाया था,
शांत रखो ,समझाओ सब,मुझको ये फ़रमाया था,
सार्वजानिक शौचालय का,तब रास्ता उसने दिखाया था,
संवेदनशीलता देख लड़के की,मन मेरा भर आया था,
बस समाज ने संस्कारों की ,चादर को इस पर डाला था,
"मासिक-धर्म"कोई पाप नही,उसने मुझे सिखाया था।

#स्वरचित#प्रियंका शर्मा#

3)तीसरी रचना-

अक्सर कहते सुनती-बहू बेटी जैसी होनी चाहिए,
क्या बहू होने में अपनी कोई खासियत नही,
जो प्रमाण चाहिए बेटी जैसी होने का,
क्यों लादे इतने नियम,क्यूँ छीनी आजादी,
घर छूटा, माँ-बाप छूटे,भाई-बहन,सहेलियां छूटी,
आजादी छीनी घूमने की,कही आने-जाने की,
पहनने की,हँसने-बोलने की,
नौकरी करने की,निर्णय लेने की,
बेटी होकर तो नही रखा सबका ध्यान,
बहू होकर ही वो जब है संपूर्ण,
तो ऐसी किसी अपेक्षा पर क्यूँ रहे जवाबदार???
वो कहते है मुझे बेटी जैसा प्यार देंगे,
क्या बहू जैसा प्यार होता ही नही??
या फिर देने लायक नही होता???
देना ही है तो बहू जैसा प्यार दो,बहू का सम्मान दो,
मेरे बुरे वक़्त में मेरे साथ खड़े रहो,
मत हंसो मेरी स्वाभाविक कमजोरियों पर,
मत खड़े करो सवाल मेरे मातृत्व पर,
मैं बहू हूं, बेटी तो जन्मी थी किसी की सालो पहले,
अब मुमकिन नही इस जनम में दुबारा।

#स्वरचित#प्रियंका शर्मा#
4) चौथी रचना-
आदमी भूल करता है,
नाकामयाब भी होता है,
और दुःख भी है पाता,
लेकिन कभी बैठा नही रहता।
पुण्य-सलिला धारा नदी की,
बढ़ती हुई ही निर्मल है रहती ,
टूटती कगार मित्रों कभी ,
दे  जाती है नुकसान भी,
इस डर से धारा को जो,
बांध दिया सदा के लिये,
होगा बुलावा सीधा ये तो,
सड़ान्ध और मृत्यु का।
ईश्वर भी सृष्टि को अपनी,
नही बाँधते सांकल से,
नई नई तब्दीलियां कर,
रखते चौकन्ना सृष्टि को,
तू भी उठ!!और लाँघ समाज की सीमा को,
गूंथ साहस के धागों में,
जीवन के हर एक कार्य को।

#स्वरचित#प्रियंका शर्मा#
5)पांचवी रचना-
मैं दहेज नही दूंगी लाड़ो, क्योंकि
मैं इसके खिलाफ हूं ,
मैं विदा नहीँ कर रही तुम्हे,
ये घर तुम्हारा है,
और सदा तुम्हारा ही रहेगा,
जहाँ चाहो वहाँ रहना,
नये घर जाकर सभी को प्यार देना,
घर को कभी टूटने मत देना,
वो भी माँ बाप ही है तुम्हारे,
पर सुन मेरी लाड़ो!!
मन मारकर कभी न जीना ,
घूंट घूंट के कभी न मरना,
मैं सदा तुम्हारे साथ हूँ,
और सदा साथ रहूंगी,
जब भी हो जरूरत मेरी,
बेझिझक मुझे बताना,
संस्कारों की आड़ में ,
नाइंसाफी कभी न सहना।
मैं तुम्हे विदा नही कर रही,
तुम सदा ये याद रखना ।

#स्वरचित#प्रियंका शर्मा#

फरिश्ता

देख जनम बेटी का,
हैवानों ने क्या कर डाला,
छोड़ फुटपाथ नन्ही परी को,
देखो शैतान कैसे भागा।
एक वृद्ध फरिश्ता बनकर,
फिर वहां पर आया,
बेटे बहू ने निकाला घर से,
बचा न कोई सहारा,
लिया गोद में उस बिटिया को,
सीने से लगाया,
रोती बिलखती गुड़िया रानी,
बॉटल से दूध पिलाया,
शांत करे बिटिया रानी को,
और यूँ बतियाया,
इस शापित जीवन में तूने ,
नया प्राण फूंक डाला,
जीवन पथ घिरा चिंता से,
पर मानवता प्रथम धर्म हमारा,
जब तक शरीर में प्राण है,
मैं बना हूँ तेरा सहारा,
कर परिश्रम कैसे भी मैं,
तुझको तो पढ़ाऊंगा,
सर उठाकर जीने योग्य,
मैं तुमको बनाऊंगा,
इच्छा शक्ति से मैं अपनी,
मृत्यु को छल जाऊंगा,
संवार जीवन तेरा ही अब ,
इस दुनिया से जाऊंगा।
#स्वरचित