शनिवार, 17 जून 2017

पाठशाला

सादर नमन समिति।मेरा प्रयास-

आई बात शाला की पोटली को टटोलू।
बात कई रंगबिरंगी पर आज उनको मैं छोडू।
वैसे तो कई दोस्त थे मेरे ,
पर बस वो ही याद आती है
हँसती खेलती आंखो को
अश्रु वो दे जाती है।
थे के दोस्त मेरे
बस वो ही याद आती है।

"प्राची"एक अनमोल हीरा
जो मेरी एक सहेली थी
पर देखो वो मैले कुचले
कपड़ो मे शाला आती थी।
बाल उसके खराब होते
और जुतो के बंध खुले।
और पढ़ाई मे पूछो न तुम
हाल थे उसके बुरे।

कक्षा मे अक्सर ही वो
बाहर देख करती थी
मास्टरजी जो डांट लागाये
चौंककर देखा करती थी।
हालांकि किसी बात का वो
जवाब नही देती थी
पर चुप से अपना वो
सिर झुका लेती थी।

एक बेजान बुत सी वो
कोई पसंद ना करता था
आये दिन हर कोई उसको
नीचा दिखाया करता था।
मास्टरजी भी हरदम उस पर
ताना कसी करते थे
जैसे ऐसा करके
आनंदित
संतुष्टि वो पाते थे।

आई बारी प्रगति रिपोर्ट की
मास्टरजी ने सोचा
लिखूँ कुछ इसके बारे मे
या इसको मैं छोडू।
जरा देखू पिछली रिपोर्ट मे
क्या गूल इसने खिलाये।

जैसे खोली रिपोर्ट पिछली
मन उनका भर आया।
धीरे धीरे राज उसका
सामने उनके आया।
ये क्या??
ये तो थी बहुत गुणी।
आज उसको पहचान था
हालातों ने उसको
आज ऐसा बनाया था।

गहन विचार के बाद
उन्होंने अब ये ठानी थी
करूँगा उसकी पूरी मदद
चाहे कुछ हो जानी थी।

दूसरे दिन जब कक्षा मे
मास्टरजी जो आये।
अरे तारीफों के पुल उनके
फुले नही समाए
गलती को उसकी
किया नजरअंदाज
खुशियां ही सिर्फ वारी
छोड़ बस्ते के बोझ को
कुछ दिन मस्ती ही थी कराई
ऐसे करके धीरे धीरे
जिंदगी उसकी संवारी।

बचपन बहुत अनमोल है होता
इतना सा सब सोचो
नन्हे नन्हे बचपन को
बोझ से ना तुम तोलो
सबमे हो काबिलियत एक सी
नही कोई जरूरी।
करो प्रेम सबसे कक्षा मे
सबमे है नई खूबी
ढूंढो उस खूबी को तुम
उसे ही आगे बढ़ाओ
नन्हे बच्चे बोझिल बस्ता
बचपन को ना दबाओ।
#स्वरचित



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