सोमवार, 5 जून 2017

प्रेम परिभाषा

आज मैं आपको शब्दों के जाल में उलझाएँ बिना कुछ बता रही हूँ।
ऐसा कुछ जो प्रेम की नई परिभाषा गढने में समर्थ है। यह बताने में समर्थ है कि एक दूसरे से घंटों बातें करना, उपहार लाकर देना, अनोखे सरप्राइज देना, साथ जीने मरने की कसमें खाना आदि ही केवल प्रेम नहीं है।
पति-पत्नी में प्रेम तब भी होता है जब सालों से एक दूसरे को आई लव यू न कहा हो, बर्फीली वादियों में एक दूसरे के बाहुपाश में तस्वीरें न खींचवाई हो, आवश्यकता की वस्तुओं के अलावा कभी पति ने एक फूल भी लाकर न दिया हो, घर की जरुरतों एवं बच्चों की परवरिश में सदैव उदासीनता दिखाई हो, कभी पति द्वारा कुछ वक्त अकेले में बिताने या करीब आने की फरमाईश करने पर पत्नी ने सदैव इंकार किया हो, जरुरत भर की बातों के अलावा मौन भाषा में ही अपने विचारों को अभिव्यक्त किया हो।
आश्चर्य हो रहा है न। ऐसा भला कैसे हो सकता है। रिश्तों में उपरोक्त बातों को महत्तव देने की हिमायती रही बबिता की कलम आज क्या कहना चाह रही है।
चलिए बताती हूँ-
मेरे पङोस में एक परिवार रहता है। मुखिया का नाम मानव और उनकी पत्नी का नाम भारती है। मानव अंकल को सब मनु बुलाते हैं। भारत के लाखों दम्पत्तियों की तरह मनु अंकल एवं भारती आंटी के रिश्ते में उपरोक्त वर्णित सम्भावनाएँ न के बराबर ही थी। नीरसता से जिंदगी आगे बढ ही रही थी कि अचानक एक दिन घर की मालकिन को ब्रेन हेमरेज हो गया।
छोटी जगह में रहने के लाख फायदे हो सकते हैं लेकिन एक बहुत बङा नुकसान है कि इंसान समय पर उचित ईलाज के अभाव में भगवान को प्यारा हो जाता है। लेकिन साहब यह भी वह ही होता है जो अपने दिन कम लेकर आता है। यहाँ के अस्पताल में भारती आंटी को मृत प्रायः घोषित कर दिया। खैर परिवार वालों ने तुरंत गुवाहटी की शरण ली। पूरे रास्ते एम्बुलेंस में मनु अंकल आंटी के पास सलाइन की बोटल हाथ में लेकर बैठे रहे। घर वाले बहुत अचंभित थे।
गुवाहटी में भी निराशा ही मिली। एक डॉक्टर ने तो मौत न आने तक घर ले जाकर मौत का इंतजार करने तक की सलाह दे दी। उम्मीदी नाउम्मीदी में बदल रही थी। दस दिन निकल चुके थे। किंतु मनु अंकल निराश नहीं थे। सकारात्मक ऊर्जा मानो उनके भीतर में ही अपना संयत्र खोल चुकी थी। वे भारती आंटी को लेकर सिलिगुङी पहुँच गए।
असली कहानी यहीं से शुरु हुई। गाँव वाले तो बिन माँगी राय के लिए हमेशा हाजिर रहते ही हैं। उनके इस कदम की सबने जमकर निंदा की। कारण एक ही सामान्य आर्थिक स्थिति में जीवन यापन करने वाला आखिर क्यों अमावस्या की रात में चाँद के दर्शन के ख्वाब देख रहा है। मनु अंकल ने किसी की सुनी ही नहीं। वहाँ भी डॉक्टर ने कहा कि उम्मीद बहुत कम है फिर भी प्रयास किया जा सकता है। जिंदा लाश की तरह भारती आंटी दस-बीस या तीस दिन नहीं पूरे दो महीने बिस्तर पर रही। डॉक्टर अपना काम कर रहे थे। किंतु जीवन का एक भी संकेत नहीं मिल रहा था।
घर वाले भी अब तो मनु अंकल से चिङने लगे थे। यहाँ तक की उनके अपने बेटे और बेटी भी। मध्यमवर्गीय परिवार के घर का सदस्य इतनी लम्बी अवधि तक किसी प्राइवेट अस्पताल में रह जाए तो उस परिवार के स्तर को निम्न स्तर पर आने में बिल्कुल वक्त नहीं लगता।
दिन आगे बढ रहे थे कि एक दिन भारती आंटी के बाएँ हाथ की उंगली हिली। बस यह अमावस्या को चांद दिखने जैसा ही था। मनु अंकल ने सिलिगुङी के उस अस्पताल के एक-एक कर्मचारी और मरीज को मिठाई खिलाई।
फिर निराशा के बादल छा गए थे। अब तो डॉक्टर भी हताश होने लगे थे। तीन महीने होने को आए थे। तभी भारती आंटी की दूसरे हाथ की भी उंगली हिली। यूँ ही वक्त की राह पर चलते एक दिन भारती आंटी को होश आ गया। अब तक छः महीने का वक्त निकल चुका था। किंतु उन्होंने किसी को पहचाना नहीं। वक्त की रफ्तार के साथ उम्मीदों को भी गति मिल रही थी। धीरे-धीरे भारती आंटी सबको पहचानने लगी। किंतु उन्हें रहना बिस्तर पर ही था। एक वर्ष सिलिगुङी रहकर मनु अंकल भारती आंटी को लेकर नलबाङी लौट आए।
तब तक आंटी दो चार टूटे फूटे शब्द बोलने लगी थी। मनु अंकल अपने साथ एक नर्स भी लाए थे जो आंटी का पूरा ख्याल रखती थी। किंतु आंटी के कपङे बदलना, उन्हें तैयार करना आदि काम अंकल अपन हाथ से करने लगे थे। वो उनके पास ही बैठते और उन्हें निहारते रहते। नर्स व्यायाम नहीं करवा पाती थी। उन्होंने यह काम भी अपने हाथ में ले लिया। धीरे-धीरे आंटी की सेहत में इतना सुधार हो गया कि वे व्हील चेयर पर बैठकर पूरे घर में घूमने लगी और सामान्य इंसान की तरह बातें करने लगी।
वक्त को शायद यह खुशी मंजूर नहीं थी। अकंल उन्हें उनके पैरों पर चलाने की जद्दोजहद में लगे थे और उधर आंटी एक दिन फिर जिंदा लाश बन गई। फिर सिलिगुङी लेकर जाना उन्होंने जरुरी नहीं समझा क्योंकि एक वर्ष वहाँ ईलाज करवाकर वे स्वयं डॉक्टर बन गए थे। नर्स की मदद से वे खुद ही ईलाज करने लगे। अब आंटी आँख तो खोलती है। मुस्कराती भी है किंतु उनकी स्मृति केवल घर के सदस्यों तक ही सीमित रह गई है। अंकल उनकी इस तरह सेवा करते हैं मानो वे देवी प्रतिमा हो।
कल मैं उनके घर गई थी। अंकल, आंटी के बालों में काली मेहंदी लगा रहे थे। उनकी माँ उनके ऊपर बरस रही थी-
“इतना श्रृंगार क्या करना है। अब यह कभी तेरे कोई काम नहीं आयेगी। समझता क्यों नहीं है। गाँव में अपनी हँसी करवा रहा है एवं घर का भी दिवाला निकाल रहा है।”
किंतु उन्हें तो मानो मतलब ही नहीं था। वो टुथ ब्रश में महंदी लेकर सामने दिखते बालों में इतने मनोयोग से मेहंदी लगा रहे थे कि गलती से भी त्वचा इसके सम्पर्क में न आ जाए।
हमें देखकर बोले-
“यह खुद अपना मेकअप नहीं कर सकती है तो क्या हुआ। इसे भी तो सुंदर दिखने का अधिकार है। इसकी साँसें चल रही है, मेरे लिए इतना ही बहुत है। मैं अगर इसके स्थान पर होता और कोई मेरे लिए मौत माँगता तो मुझे कैसा लगता...............यह कह नहीं पा रही। सोचती तो यह भी है ही न...............”
मैं अपने आँसू नहीं रोक पाई। मैं वहाँ से तुरंत लौट आई। जानती हूँ आंटी कभी अपने पैरों पर नहीं चल पायेगी। किंतु भगवान से इतनी दुआ तो आप सब मेरे साथ करना कि बिस्तर पर रहते हुए ही वे मनु अंकल से हँसकर बात करने लायक हो जाए...............
मनु अंकल अब आंटी को दिल्ली ले जाकर दिखाना चाहते हैं। इस हालत में आंटी को दिल्ली लेकर जाना समझदारी भरा निर्णय है या नहीं पता नहीं.................
किंतु अंकल के प्रेम के आगे वे सभी प्रेम के तरीके असफल है जिन्हें प्रेम कहा जाता है। अंकल एक तरह से निर्जीव देह से प्रेम की हद तक प्रेम करते हैं.............किंतु उन्होंने कभी भारती आंटी को नहीं बोला-
मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगा..........तुम स्वर्ग से उतरी अप्सरा लगती हो..........किंतु आज वे अपनी बीमार पत्नी को अप्सरा की तरह ही सजाकर रखते।
हर एक बात पर शिकायत करने से पहले हमें हमारे रिश्तों के बारे में सोचने की आवश्यकता है।
हर किसी को प्रेम के इजहार करना नहीं आता। जो इजहार नहीं करते वे प्रेम नहीं करते यह धारणा बकवास है क्योंकि मैंने कई ऐसे प्रेम का इजहार करने वाले देखे हैं जो चार दिन पत्नी या पति की तबियत खराब होने पर ही पाँचवें दिन से नजर अंदाज करना शुरु कर देते हैं।
यदि अमीर है तो नर्स के भरोसे छोङ देते हैं एवं गरीब है तो भगवान के भरोसे..................

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