सोमवार, 7 अगस्त 2017

मुक्तक

122         2122        2122

दिया सा रात भर जलता रहा है
सुनो झूठा भरम पलता रहा है
सितारे राहों में तेरी बिछाकर
सदा काँटो पे वो चलता रहा है।

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