बुधवार, 23 अगस्त 2017

डाकिया

रोज देखती आते तुमको
सुबह सुबह निकल जाते
सांझ तले हो घर को जाते
डाकिया बाबू कहलाते तुम।

मैं भी तँकती राह तुम्हारी
कोई संदेश न लाते तुम
कागजी डाक देकर जाते
अरमान सारे तोड़ मेरे
वापिस लौट जाते  हो तुम।

दूर परदेस ब्याह कर आई
कोई अपना न दिखता यहाँ
राह तंकती आये कोई चिठियाँ
चिठियाँ अब न लाते तुम।

इस आधुनिक दुनिया ने
बदल डाले सारे दस्तूर
संदेश नही अब प्रीत भरा
अंखियां अश्रु दे जाते तुम।

स्वरचित प्रियंका शर्मा

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