रोज देखती आते तुमको
सुबह सुबह निकल जाते
सांझ तले हो घर को जाते
डाकिया बाबू कहलाते तुम।
मैं भी तँकती राह तुम्हारी
कोई संदेश न लाते तुम
कागजी डाक देकर जाते
अरमान सारे तोड़ मेरे
वापिस लौट जाते हो तुम।
दूर परदेस ब्याह कर आई
कोई अपना न दिखता यहाँ
राह तंकती आये कोई चिठियाँ
चिठियाँ अब न लाते तुम।
इस आधुनिक दुनिया ने
बदल डाले सारे दस्तूर
संदेश नही अब प्रीत भरा
अंखियां अश्रु दे जाते तुम।
स्वरचित प्रियंका शर्मा
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