सोमवार, 15 मई 2017

मुसाफिर

मुसाफिर मैं
जीवन डगर में
चलती रही

रास्ते कठिन
उबड़ खाबड़ ही
चलती चली

चोट भी खाई
हुई जग हँसाई
चुप ही रही

कांटे झाड़ियां
बचते बचाते भी
चलती चली

चाहा बचना
शॉर्टकट ही नहीँ
तलाशें कभी

रास्ते वही जो
पाते थे मंजिल
और नही भी

मुसाफिर मैं
जीवन डगर में
चलती रही।
#स्वरचित#

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